आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥ अर्थ- हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से https://shivchalisas.com